Hindi Poems on Beauty – सुन्दरता पर हिंदी कविताएँ
Hindi Poems on Beauty अर्थात इस आर्टिकल में आप पढेंगे, सुन्दरता के विषय पर दी गयी हिंदी कविताओं का एक संग्रह. सुन्दरता को सरहाने के लिए, कविताओं का प्रयोग करना एक उन्नत तरीका है. सुन्दरता के सम्बन्ध में अलग-अलग कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत की गयी हैं.
Hindi Poems on Beauty – सुन्दरता पर हिंदी कविताएँ
Contents
भीषण सुन्दरता (कविता का अंश) / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
जहां पहाड़ो में पिचकी सरिता रोबीलीगरल उगलती है मुख से, पत्थर पर टकरारजनी में बेसुध क्यों हो जाता है जीवनआता है वह कौनप्रिया के केश खेालनेइस सेायी धरती के यौवन की माया मेंअन्धकार में चुपके चुपकेे प्रेम स्वप्न सा(भीषण सुन्दरता कविता से )
सुन्दर मन / विमल राजस्थानी
.मन सुन्दर तो सब सुन्दर है
1विद्या-बुद्धि-ज्ञान-धन-दौलततेरे पास विपुल बहुतेरेलेकिन परम पुरूष तो केवलमन की सुन्दरता को हेरेअजर-अमर मन की सुन्दरताबाकी सब कुछ तो नश्वर हैमन सुन्दर तो सब सुन्दर है
2मन में जब तक बसे न साईंमन सुन्दर होगा न हमारा‘पानी’ ही मोती की कीमतद्युति हीरे का मात्र सहाराजिसका मन सुन्दर-सुन्दरतमउसका जीवन ही सुखकर हैमन सुन्दर तो सब सुन्दर है
3मन मीठो तो कटु भी मीठामन तीता, मधु भी तीता हैजिसका मन वीभत्स, असुन्दरउसका जीवन-घट रीता हैसुन्दर मन वालों ने ही तो-जीता यह संसार-समर हैमन सुन्दर तो सब सुन्दर है
4सुन्दरता वरदान, असुन्दरता-अभिशाप हुआ करती हैसुन्दरता की श्री-सुषमा ही-जीवन धन्य किया करती हैसुन्दरता है अमृत, असुन्दरताकुरूपता जहर-कहर हैमन सुन्दर तो सब सुन्दर है
नारी एक कला है / केदारनाथ पाण्डेय
कुशल तूलिका वाले कवि की नारी एक कला है।फूलों से भी अधिक सुकोमलनरम अधिक नवनी से,प्रतिपल पिछल-पिछल उठने वालीअति इन्दु मनी से,नवल शक्ति भरने वाली वह कभी नहीं अबला है।
तनया-प्रिया-जननि केअवगुण्ठन में रहने वाली,सत्यं शिवम् सुन्दरम् सीजीवन में बहने वाली,विरह मिलन की धूप-छाँह में पलती शकुन्तला है।
है आधार-शिला सुन्दरता कीमधु प्रकृति-परी सी,शुभ संसृति का बीज लिये,मनु की उस तरुण-तरी सी,तिमिरावृत्त जीवन के श्यामल पट पर चंद्र्कला है।
करुणा की प्रतिमा वियोग कीमूर्ति-मधुर-अलबेलीनिज में ही परिपूर्ण प्रेममयजग आधार अकेली,सारी संसृति टिकी हुई ऐसी सुन्दर अचला है
अमृत-सिन्धु ,अमृतमयीजग की कल्याणी वाणी।अब भी चम-चम चमक रही हैंतेरी चरण निशानी,तेरे ही प्रकाश से जगमग दीप जला है।
नारी एक कला है॥तन की सुन्दरता क्या होगी / विमल राजस्थानी
जब मन ही नहीं रहा सुन्दर, तन की सुन्दरता क्या होगी ?जीवन तो बहता पानी हैमन यायावर, सैलानी हैजीवन से अलग, पृथक मन से-तन का होना बेमानी है
मन का होना ही होना है, तन मन का सुगढ़ खिलौना हैंमन ठौर-कुठौर न देखे तो मन की भास्वरता क्या होगी ?
कुविचार हृदय को छलते हैंसुविचार दीप-सा जलते हैंइस छलने-जलने को लेकरहम जीवन पथ पर चलते हैं
हैं फूल यहाँ, काँटे भी हैं, घन-गर्जन, सन्नाटे भी हैंलौ से पथ-पंक न सूखा तो गौरांग प्रखरता क्या होगी ?
ये सहज दूरियाँ पल भर में-मन ही तो नापा करते हैंतारे छूते हिम-शैल देख,तन सिहरा-काँपा करते हैं
मन चाह रहा नभ को छूना, तन थका-थका, दूना-दूनागिरि-श्रृंग न पद-तल चूमे तो कोरी विहृलता क्या होगी ?
मन एक चमकता दर्पण हैजीवन प्रतिबिम्बित होता हैआवरण नहीं, तन तो तल हैमन छल-छल निर्मल सोता है
बहते रहना ही जीवन है, लेना छलाँग ही यौवन हैठहरे जल में सागर बनने वाली आकुलता क्या होगी ?
तन श्वेत-श्याम, मन उज्जवल होनिर्मल जल मन, तन शतदल होतो सुन्दरतम यह भूतल होसंसार न दुख का जंगल हो
बेला फूले, चम्पा फूले, साँसों पर मलय-सुरभि झूलेजीवन जब झूमे-गाये तक कलमुँही अमरता क्या होगी ??
सुन्दरता / केशव
शब्दहो जाते हैं नष्टसुन्दरता बनी रहती हैशब्दों से पकड़ने के लिए जिसेखोजने पड़ते हैंऔर-और शब्दफिर भीशब्द पकड़ नहीं पातेउस अपलक दृष्टि कोजो सुन्दरता कोफूलों लदी नाव की तरहबहने देती है भीतरचुपचाप
ऐसे ही क्यानहीं ले आते शब्दमेरे निकट तुम्हेंदब जाते हैं फिरख़ामोशी की चट्टान तले
रह जाती होतुमकेवल मात्र तुममेरे पास—-कभी खामोश ज्वालामुखी की तरहकभीलहरों से भीगती तट की तरहकभीअभी-अभी फूटी कोंपल की तरहऔर कभीधूप के उस उजले समुद्र की तरहजिसमें हमनतमस्तक होफैल जाते हैं मौसम की तरहअनंत विस्तार में
शक्ति या सौंदर्य / रामधारी सिंह “दिनकर”
तुम रजनी के चाँद बनोगे ?या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?एक बात है मुझे पूछनी,फूल बनोगे या पत्थर ?
तेल, फुलेल, क्रीम, कंघी सेनकली रूप सजाओगे ?या असली सौन्दर्य लहू काआनन पर चमकाओगे ?
पुष्ट देह, बलवान भूजाएँ,रूखा चेहरा, लाल मगर,यह लोगे ? या लोग पिचकेगाल, सँवारि माँग सुघर ?
जीवन का वन नहीं सजाजाता कागज के फूलों से,अच्छा है, दो पाट इसेजीवित बलवान बबूलों से।
चाहे जितना घाट सजाओ,लेकिन, पानी मरा हुआ,कभी नहीं होगा निर्झर-सास्वस्थ और गति-भरा हुआ।
संचित करो लहू; लोहू हैजलता सूर्य जवानी का,धमनी में इससे बजता हैनिर्भय तूर्य जावनी का।
कौन बड़ाई उस नद कीजिसमें न उठी उत्ताल लहर ?आँधी क्या, उनचास हवाएँउठी नहीं जो साथ हहर ?
सिन्धु नहीं, सर करो उसेचंचल जो नहीं तरंगों से,मुर्दा कहो उसे, जिसका दिलव्याकुल नहीं उमंगों से।
फूलों की सुन्दरता कातुमने है बहुत बखान सुना,तितली के पीछे दौड़े,भौरों का भी है गान सुना।
अब खोजो सौन्दर्य गगन–चुम्बी निर्वाक् पहाड़ों में,कूद पड़ीं जो अभय, शिखर सेउन प्रपात की धारों में।
सागर की उत्ताल लहर में,बलशाली तूफानों में,प्लावन में किश्ती खेने-वालों के मस्त तरानों में।
बल, विक्रम, साहस के करतबपर दुनिया बलि जाती है,और बात क्या, स्वयं वीर-भोग्या वसुधा कहलाती है।
बल के सम्मुख विनत भेंड़-साअम्बर सीस झुकाता है,इससे बढ़ सौन्दर्य दूसरातुमको कौन सुहाता है ?
है सौन्दर्य शक्ति का अनुचर,जो है बली वही सुन्दर;सुन्दरता निस्सार वस्तु है,हो न साथ में शक्ति अगर।
सिर्फ ताल, सुर, लय से आताजीवन नहीं तराने में,निरा साँस का खेल कहोयदि आग नहीं है गाने में।
सुन्दरता का आलोक / सुमित्रानंदन पंत
सुन्दरता का आलोक-श्रोतहै फूट पड़ा मेरे मन में,जिससे नव जीवन का प्रभातहोगा फिर जग के आँगन में!मेरा स्वर होगा जग का स्वर,मेरे विचार जग के विचार,मेरे मानस का स्वर्ग-लोकउतरेगा भू पर नई बार!सुन्दरता का संसार नवलअंकुरित हुआ मेरे मन में,जिसकी नव मांसल हरीतिमाफैलेगी जग के गृह-बन में!होगा पल्लवित रुधिर मेराबन जग के जीवन का वसन्त,मेरा मन होगा जग का मन,औ’ मैं हूँगा जग का अनन्त!मैं सृष्टि एक रच रहा नवलभावी मानव के हित, भीतर,सौन्दर्य, स्नेह, उल्लास मुझेमिल सका नहीं जग में बाहर!
by-satyam badgujar..तेरे उर की शुचि सुन्दरता / हनुमानप्रसाद पोद्दार
तेरे उर की शुचि सुन्दरता, पावन वह माधुर्य महान।तेरा शोभा-शील-भरा वह सरल हृदय सदगुणकी खान॥तेरी अनुपम वह अनन्यता, तेरा वह पवित्रतम त्याग।तेरा वह सपूर्ण समर्पण, आत्मनिवेदन, शुचितम राग॥तेरा वह संकोच सुधामय, तेरा वह आदर्श सु-भाव।तेरी अमर्याद मर्यादा, गोपनीय उत्सुकता, चाव॥सभी पवित्र, सभी सुषमामय, सहज दिव्य आचार-विचार।उज्ज्वल, त्यागपूर्ण, प्रेमामृत-पूरित, परमानन्दाधार॥कभी विस्मरण हो न पा रहा, बनी विलक्षण स्मरणसक्ति।तेरे पद-कमलों में मेरी बढ़ती रहे सदा अनुरक्ति॥
सुन्दरता और काल / रामधारी सिंह “दिनकर”
बाग में खिला था कहीं अल्हड़ गुलाब एक,गरम लहू था, अभी यौवन के दिन थे;ताना मार हँसा एक माली के बुढ़ापे पर,“लटक रहे हैं कब्र-बीच पाँव इसके।”
चैत की हवा में खूब खिलता गया गुलाब,बाकी रहा कहीं भी कसाव नहीं तन में।माली को निहार बोला फिर यों गरूर में कि“अब तो तुम्हारा वक्त और भी करीब है।”
मगर, हुआ जो भोर, वायु लगते ही टूटबिखर गईं समस्त पत्तियाँ गुलाब की।दिन चढ़ने के बाद माली की नज़र पड़ी,एक ओर फेंका उन्हें उसने बुहार के।
मैंने एक कविता बना दी तथ्य बात सोच,सुषमा गुलाब है, कराल काल माली है।
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