हिंदी कविता

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें 

कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें ।

 जीवन-सरिता की लहर-लहर,
मिटने को बनती यहाँ प्रिये
 संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने
 हम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये ।

 पल-भर तो साथ-साथ बह लें,
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें ।

 आओ कुछ ले लें औ' दे लें ।

 हम हैं अजान पथ के राही,
चलना जीवन का सार प्रिये
 पर दुःसह है, अति दुःसह है
 एकाकीपन का भार प्रिये ।

 पल-भर हम-तुम मिल हँस-खेलें,
आओ कुछ ले लें औ' दे लें ।

 हम-तुम अपने में लय कर लें ।

 उल्लास और सुख की निधियाँ,
बस इतना इनका मोल प्रिये
 करुणा की कुछ नन्हीं बूँदें
 कुछ मृदुल प्यार के बोल प्रिये ।

 सौरभ से अपना उर भर लें,
हम तुम अपने में लय कर लें ।

 हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें ।

 जग के उपवन की यह मधु-श्री,
सुषमा का सरस वसन्त प्रिये
 दो साँसों में बस जाय और
 ये साँसें बनें अनन्त प्रिये ।

 मुरझाना है आओ खिल लें,
हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें ।

तुम सुधि बन-बनकर बार-बार 

तुम सुधि बन-बनकर बार-बार
 क्यों कर जाती हो प्यार मुझे?
फिर विस्मृति बन तन्मयता का
 दे जाती हो उपहार मुझे ।

 मैं करके पीड़ा को विलीन
 पीड़ा में स्वयं विलीन हुआ
 अब असह बन गया देवि,
तुम्हारी अनुकम्पा का भार मुझे ।

 माना वह केवल सपना था,
पर कितना सुन्दर सपना था
 जब मैं अपना था, और सुमुखि
 तुम अपनी थीं, जग अपना था ।

 जिसको समझा था प्यार, वही
 अधिकार बना पागलपन का
 अब मिटा रहा प्रतिपल,
तिल-तिल, मेरा निर्मित संसार मुझे ।

अज्ञात देश से आना 

मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ
 अपने प्रकाश की रेखा
 तम के तट पर अंकित है
 निःसीम नियति का लेखा

 देने वाले को अब तक
 मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर पल भर सुख भी देखा
 फिर पल भर दुख भी देखा।

 किस का आलोक गगन से
 रवि शशि उडुगन बिखराते?
किस अंधकार को लेकर
 काले बादल घिर आते?

उस चित्रकार को अब तक
 मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर देखा है चित्रों को
 बन-बनकर मिट-मिट जाते।

 फिर उठना, फिर गिर पड़ना
 आशा है, वहीं निराशा
 क्या आदि-अन्त संसृति का
 अभिलाषा ही अभिलाषा?

अज्ञात देश से आना,
अज्ञात देश को जाना,
अज्ञात अरे क्या इतनी
 है हम सब की परिभाषा?

पल-भर परिचित वन-उपवन,
परिचित है जग का प्रति कन,
फिर पल में वहीं अपरिचित
 हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन।

 है क्या रहस्य बनने में?
है कौन सत्य मिटने में?
मेरे प्रकाश दिखला दो
 मेरा भूला अपनापन।

बसन्तोत्सव

मस्ती से भरके जबकि हवा
 सौरभ से बरबस उलझ पड़ी
 तब उलझ पड़ा मेरा सपना
 कुछ नये-नये अरमानों से;
गेंदा फूला जब बागों में
 सरसों फूली जब खेतों में
 तब फूल उठी सहस उमंग
 मेरे मुरझाये प्राणों में;
कलिका के चुम्बन की पुलकन
 मुखरित जब अलि के गुंजन में
 तब उमड़ पड़ा उन्माद प्रबल
 मेरे इन बेसुध गानों में;
ले नई साध ले नया रंग
 मेरे आंगन आया बसंत
 मैं अनजाने ही आज बना
 हूँ अपने ही अनजाने में!
जो बीत गया वह बिभ्रम था,
वह था कुरूप, वह था कठोर,
मत याद दिलाओ उस काल की,
कल में असफलता रोती है!
जब एक कुहासे-सी मेरी
 सांसें कुछ भारी-भारी थीं,
दुख की वह धुंधली परछाँही
 अब तक आँखों में सोती है।
 है आज धूप में नई चमक
 मन में है नई उमंग आज
 जिससे मालूम यही दुनिया
 कुछ नई-नई सी होती है;
है आस नई, अभिलास नई
 नवजीवन की रसधार नई
 अन्तर को आज भिगोती है!
तुम नई स्फूर्ति इस तन को दो,
तुम नई नई चेतना मन को दो,
तुम नया ज्ञान जीवन को दो,
ऋतुराज तुम्हारा अभिनन्दन!

तुम अपनी हो, जग अपना है 

तुम अपनी हो, जग अपना है
 किसका किस पर अधिकार प्रिये
 फिर दुविधा का क्या काम यहाँ
 इस पार या कि उस पार प्रिये ।

 देखो वियोग की शिशिर रात
 आँसू का हिमजल छोड़ चली
 ज्योत्स्ना की वह ठण्डी उसाँस
 दिन का रक्तांचल छोड़ चली ।

 चलना है सबको छोड़ यहाँ
 अपने सुख-दुख का भार प्रिये,
करना है कर लो आज उसे
 कल पर किसका अधिकार प्रिये ।

 है आज शीत से झुलस रहे
 ये कोमल अरुण कपोल प्रिये
 अभिलाषा की मादकता से
 कर लो निज छवि का मोल प्रिये ।

 इस लेन-देन की दुनिया में
 निज को देकर सुख को ले लो,
तुम एक खिलौना बनो स्वयं
 फिर जी भर कर सुख से खेलो ।

 पल-भर जीवन, फिर सूनापन
 पल-भर तो लो हँस-बोल प्रिये
 कर लो निज प्यासे अधरों से
 प्यासे अधरों का मोल प्रिये ।

 सिहरा तन, सिहरा व्याकुल मन,
सिहरा मानस का गान प्रिये
 मेरे अस्थिर जग को दे दो
 तुम प्राणों का वरदान प्रिये ।

 भर-भरकर सूनी निःश्वासें
 देखो, सिहरा-सा आज पवन
 है ढूँढ़ रहा अविकल गति से
 मधु से पूरित मधुमय मधुवन ।

 यौवन की इस मधुशाला में
 है प्यासों का ही स्थान प्रिये
 फिर किसका भय? उन्मत्त बनो
 है प्यास यहाँ वरदान प्रिये ।

 देखो प्रकाश की रेखा ने
 वह तम में किया प्रवेश प्रिये
 तुम एक किरण बन, दे जाओ
 नव-आशा का सन्देश प्रिये ।

 अनिमेष दृगों से देख रहा
 हूँ आज तुम्हारी राह प्रिये
 है विकल साधना उमड़ पड़ी
 होंठों पर बन कर चाह प्रिये ।

 मिटनेवाला है सिसक रहा
 उसकी ममता है शेष प्रिये
 निज में लय कर उसको दे दो
 तुम जीवन का सन्देश प्रिये । 

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